लोकसभा चुनाव के ठीक 6 महीने पहले हुए विधानसभा चुनावों में राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार बनी थी। अशोक गहलोत को राजस्थान, कमलनाथ को मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बनाए गए थे। एमपी, राजस्थान के लोकसभा चुनाव परिणामों ने राहुल को खासा निराश किया। ये दोनों नेता अपने-अपने बेटे को चुनाव लड़ाने में पूरी पार्टी को ही दांव पर लगाते हुए चित कर दिया। कमलनाथ के बेटे नकुल महज कुछ हजार वोटों से ही सीट बचाने में सफल रहे। वहीं अशोक गहलोत के पुत्र वैभव लगभग तीन लाख वोट की चपेट से चोटिल हो गए।
चुनाव के दौरान कांग्रेस संसदीय बोर्ड पूरी तरह से अहमद गैंग के हाथों में था। चुनाव प्रचार की सामग्री से लेकर चुनावी खर्च में हुई धांधली का उनका खेल खुल चुका है। कांग्रेस अध्यक्ष ने अपने ऊपर हार की जिम्मेदारी लेते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया था, लेकिन ये कुर्सी पकड़ नेता जो हार की जिम्मेदारी के लिए बराबर के शरीक हैं, अपने-अपने पदों को छोड़ने को तैयार नहीं हैं। राहुल ने इस्तीफा वापसी की शर्त पर सामूहिक इस्तीफे की बात की थी जिस पर ये आधारविहीन नेता और फर्जी गैंग संगठन में अपनी वापसी न हो पाने की डर से आज तक अपने पद से चिपका हुआ है।
राहुल के इस्तीफे किए हुए दो महीने से अधिक समय बीत चुका है, लेकिन कार्यसमिति में अहमद गैंग कोई अपना नाम तय नहीं करा सका। मनमोहन सिंह, ए.के. एंटोनी, मोतीलाल वोरा, कैप्टन अमरिंदर, सुशील कुमार शिंदे, गुलाम नबी आजाद, लंबे समय के बाद कांग्रेस में वापसी करने वाले तारिक अनवर सरीखे नेता राहुल को अध्यक्ष पद पर बनाए रखना चाहते हैं। ये नेता गैंग अहमद से कांग्रेस का पीछा छुड़ाते हुए नए और पुराने अनुभवी लोगों को पार्टी में लाकर कांग्रेस कार्यसमिति और प्रदेश नेतृत्व को अनुभवी नेताओं के हाथों में देकर संगठन को मजबूत करने की मंशा के साथ खड़े हैं।
राहुल गांधी समय-समय पर अहमद के सिपाहसलारों को संगठन से बाहर करने में अब तक सफल रहे है। किश्तों में उन्होंने दिग्विजय सिंह, जनार्दन द्विवेदी, बी.के. हरिप्रसाद, रात भर नौटंकी चलाने वाले ऑस्कर फर्नांडीस, सी.पी. जोशी, मोहन प्रकाश, शकील अहमद जैसे कई नेताओं को घर बिठाया है। अब अहमद के साथ मल्लिकार्जुन खड़गे, मुकुल वासनिक को संगठन से बाहर रखना उनकी प्राथमिकता में है। दलितों के नेता बनकर कांग्रेस में अपनी पहचान बनाने वाले दलितों को कांग्रेस की राजनीति से बाहर रखने का खेल खेलते रहे हैं। राहुल के इस्तीफे का ये पत्ता इन सभी नेताओं पर तुरूप के पत्ते की तरह भारी पड़ रहा है।
दिग्विजय सिंह के साथ राजनीति करने वाले लोग उन्हें झूठा बताते हैं। आज भी बड़ी चतुराई से दिग्गी ने सोशल मीडिया के जरिए खुद को राजीव गांधी द्वारा राजनीति में लाया बताया। जबकि वे 77 में राघोगढ़ से विधायक रह चुके हैं। वे राघोघढ़ के म्यूनिसिपल कार्पोरेशन के कमिटी के 69-71 तक सदस्य भी रहे हैं। अर्जुन सिंह के करीबी ए.के. सिंह बताते हैं कि अर्जुन सिंह की सिफारिश पर ही अरुण कुमार सिंह मुन्ना जो उस जमाने में मध्यप्रदेश के यूथ कांग्रेस के महासचिव व इंचार्ज थे, ने दिग्विजय सिंह को कोषाध्यक्ष बनाया था। मध्य प्रदेश की राजनीति में दिग्विजय सिंह को अर्जुन सिंह की स्टेपनी माना जाता था।
यूथ कांग्रेस में कोषाध्यक्ष नाम का कोई पद नहीं है, लेकिन आदिवासी युवा को मध्यप्रदेश का अध्यक्ष बनाए जाने के कारण दिग्गी को उनकी जीत सुनिश्चित करने और उनका खर्चा उठाने के लिए जोड़ा था। मुन्ना ने स्वजाति होने के कारण दिग्विजय को राजनीति में चिपका दिया था। राघोगढ़ का ये कलाकार अर्जुन सिंह के पुत्र अजय सिंह का पिछलग्गू बनकर उनको रिश्तेदारी के जाल में फांसकर उनका करीबी बन गया।
जिस अहमद पटेल को दिग्गी राहुल गांधी द्वारा राजनीति में लाया बता रहे हैं, वे तो संजय गांधी के जमाने में 77 में सांसद बन चुके थे। अहमद को राजनीति में लाने का श्रेय अकबर अहमद डंपी का था। दिल्ली में गणित का ट्यूशन पढ़ाने वाले तब के नौजवान अहमद को डंपी ने इंदिरा गांधी के निवास पर अपना प्यादा बनाकर बिठाया था। इंदिरा गांधी ने ही 80 में राजस्थान के अशोक गहलोत और बिहार के श्याम सुंदर सिंह धीरज को एनएसयूआई के प्रदेश अध्यक्ष रहते मंत्री बनवाया था।
गुलाम नबी आजाद भी जम्मू-कश्मीर में अपने लिए 250 वोटों का जुगाड़ नहीं कर पाए थे। तब इंदिरा गांधी ने आजाद को महाराष्ट्र के यावतमाल से चुनाव लड़ाकर सांसद बनवाया था। यही हाल आनंद शर्मा का भी था। वो भी विधानसभा चुनाव लड़े थे और लगभग 200 वोटों का जुगाड़ कर पाए थे। हरियाणा के दिग्गज जाट नेता चौधरी वीरेंद्र सिंह गैंग अहमद के शिकार बने और वर्तमान में भाजपा से राज्यसभा सांसद हैं। उनकी पत्नी विधायक और बेटा भी भाजपा से सांसद हैं।
सोनिया गांधी ने राजशेखर रेड्डी को राजनीति में आगे बढ़ाया था। राजशेखर की मृत्यु के बाद उस परिवार का बुरा हाल गैंग अहमद ने ही किया। यूपीए के शासन काल में ही अहमद के इशारे पर राजशेखर को पार्टी तक छोड़ना पड़ा। आज उनके पुत्र जगन मोहन रेड्डी आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री बने हुए हैं। उडुपी की सांसद टी.ए. पाई ने अपने खर्चे से अपने यहां क्लर्क ऑस्कर फर्नांडीस को इंदिरा गांधी के निवास पर टाइपिस्ट के तौर पर बिठाया था। पाई पार्टी छोड़ गए और वहां से कोई उम्मीदवार न होने की वजह से ऑस्कर की किस्मत खुल गई। उडुपी संसदीय क्षेत्र से ऑस्कर 80 में सांसद हो गए।
दिग्विजय बुढ़ापे में सठिया गए हैं। ज्यादा बोलने के साथ भूलने की बीमारी ने भी उन्हें जकड़ लिया है। दिग्विजय सिंह पर उनके बेटे का भारी दवाब है। राहुल के दफ्तर के राजपूत सिपाहसलारों ने दिग्गी को जाति से बाहर करते हुए तुगलक रोड में इनकी एंट्री बैन करा दी। ये राहुल और उनके सलाहकारों को अपना चेला बताने में माहिर रहे हैं। रही सही कसर उनके बेटे ने पूरी कर दी। बड़े-बड़े लोगों को हड़काने वाले दिग्गी अपने मंत्री पुत्र से बड़ा हड़कते हैं। मंत्री पुत्र जयवर्द्धन सिंह ने उनको समझा दिया है कि आप राजनीतिक संन्यास लें और गृहस्थ जीवन का आनंद उठाएं। दिग्गी पुत्र समझ चुके हैं कि उनका बड़बोलापन उनका सूर्यास्त कर देगा। लगे हाथ दिग्गी ने सोशल मीडिया के जरिए गैंग अहमद को भी संदेश दे दिया है कि राहुल गांधी और उनकी युवा टीम को पार्टी की बागडोर सौंप दी जाए।
Now the time has come for Rahul Gandhi and his young Team to take over and rebuild the Party. I have not understood who are the members of "Governing Body". All from our generation would be too happy to hand over the Baton!
— Digvijaya Singh (@digvijaya_28) July 23, 2019
राजनीतिक रूप से टूट चुके दिग्विजय सिंह की पीड़ा समझी जा सकती है। वहीं अहमद टीम के मुकुल वासनिक और मल्लिकार्जुन खड़गे खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं। अध्यक्ष पद पर नाम चलने के कारण इनके सीने फूले हुए थे, अब गर्दन झुकी हुई है। आने वाला कल अहमद गैंग के लिए बुरी खबर है। जो कभी उनके दरबारी थे, आज वे अहमद का साथ छोड़ चुके हैं और अपनी नई राजनीतिक पारी टीम राहुल के साथ जोड़ने की फिराक में हैं। अशोक गहलोत जैसे नेता भी सरेंडर कर चुके हैं और टीम राहुल में फिर से घूसने की फिराक में हैं जो अब आसान नहीं।
संगठन की बागडोर संभालने वाले के.सी. वेणुगोपाल खुद प्रियंका गांधी के निशाने पर हैं। जिस भरोसे के साथ उनको संगठन की जवाबदेही दी गई थी, वो चुनाव के दौरान मुकुल के पिछलग्गू होने और टिकट वितरण में भारी गड़बड़ी से एक्सपोज हो चुके हैं। इसकी शिकायत बकायदा कांग्रेस के सचिवों ने एक गोपनीय पत्र के माध्यम से 12 तुगलक लेन भिजवाई थी। राहुल गांधी इस महीने के आखिरी में कांग्रेस अध्यक्ष पद पर वापसी तो करेंगे लेकिन पार्टी संगठन में भारी बदलाव करेंगे, इसकी संभावना दिखने लगी है।
हालांकि अहमद गैंग प्रियंका गांधी को अध्यक्षीय पारी खेलने के लिए उसकाने में जुटा था। मगर सधे हुए अंदाज से मंझे हुए राजनेता की तरह सोनभद्र में प्रियंका गांधी ने उनके दांव को यह कहकर पलट दिया कि मुझे सोनभद्र कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के निर्देश पर आई हूं। राजनीति में राहुल को विश्वस्थ साथी के साथ प्रियंका गांधी का साथ मिला है। सोनभद्र की सधी हुई राजनीति ने विपक्ष ही नहीं कांग्रेस के इन दिग्गजों को भी चौका दिया है जो परिवार में फूट डालकर अपनी राजनीतिक रोटी सेंकना चाहते थे।
courtesy: Blitz India News