पूर्व केंद्रीय मंत्री और बॉलीवुड अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा ने ट्विटर पर एक लेख को शेयर किया है। इसका शीर्षक है ‘टू मिनट्स एंड वन ट्वीट’। शत्रुघ्न सिन्हा के मुताबिक इस लेख को शांतनु सेनगुप्ता ने लिखा है।
पूर्व केंद्रीय मंत्री और बॉलीवुड अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा ने ट्विटर पर एक आलेख को शेयर किया है। इसका शीर्षक है ‘टू मिनट्स एंड वन ट्वीट’। शत्रुघ्न सिन्हा के मुताबिक इस लेख को शांतनु सेनगुप्ता ने लिखा है।
शत्रुघ्न सिन्हा ने अपने ट्विटर पर एक लेख शेयर किया है। इस लेख को उन्होंने एक थ्रेड के जरिए अपने फॉलोअर्स के साथ साझा किया है। इस लेख में जो लिखा है, वह इस तरह है:
दो मिनट और एक ट्वीट…दो मिनट…दो मिनट में जायकेदार मैगी तैयार हो जाती है। या फिर दो मिनट एक पूरे आंदोलन की दिशा ही बदल देते हैं। शायद दो मिनट और एक ट्वीट इसके लिए काफी है। दो मिनट में एक कद्दावर किसान नेता का बेटा, जो अपने पिता की छाया से बाहर नहीं आ पा रहा था और सरकार ने जिसे कभी गंभीर प्रतिरोध तक नहीं माना, उसने पूरे आंदोलन की पटकथा ही दो मिनट में नए सिरे से लिख दी।
सरकार वैसे तो हर होनी-अनहोनी के लिए तैयार थी। उसने आंदोलन में शामिल सिख किसानों को खालिस्तानी एंटी-नेशनल उसी तरह ब्रांड कर दिया था जिस तरह सीएए विरोधी आंदोलन में आंदोलनकारियों को पाकिस्तानी एंटी नेशनल बनाया गया था।
उस दौरान भी तथाकथित स्थानीय लोगों को पुलिस ने खुली छूट देकर आंदोलनकारियों पर पत्थरबाजी करने दी थी, वैसा ही किसान आंदोलन में भी हुआ। शाहीन बाग और दिल्ली की हिंसा का ब्लू प्रिंट पहले से था और उस पर काम भी लगभग शुरु हो चुका था। कोशिश यही थी कि कैसे आंदोलनकारियों के बीच में अपने लोगों को शामिल कराया जाए और पूरे आंदोलन को ही अगवा कर अपनी मर्जी का खेल खेला जाए। दीप सिद्धु जैसे बेलगाम घोड़े दरवाजा तोड़ ही चुके थे।
लेकिन राकेश टिकैत के नेशनल टीवी पर दो मिनट के आंसू, जो एकदम स्वाभाविक थे, और शायद जमीन न छोड़ने की जिद से उपजे थे, इन आंसुओं में सरकार की सारी स्क्रिप्ट धुल गई और सारी योजनाएं धरी की धरी रह गईं। मोदी-शाह के गले में मछली का कांटा फंस गया था। टिकैत के आंसुओं के बाद किसानों का सैलाब धरना स्थलों पर पहुंचने लगा। यह हिंदू किसान थे, जाट किसान थे, जो हाल तक बीजेपी समर्थक माने जाते रहे थे। सिख किसान आंदोलनकारियों को तो आसानी से एंटी नेशनल साबित किया जा सकता था, और पिछले साल उत्तर पूर्वी दिल्ली जैसा कुछ किया जा सकता था। लेकिन, लाखों हिंदू किसानों का आंदोलन में शरीक होना, वह भी फौलादी इरादों के साथ, उसने सब किए धरे पर पानी फेर दिया। आज यह हरियाणआ और यूपी से आ रहे हैं, कल को बिहार और कर्नाटक से भी आ सकते हैं।
इन दो मिनट की क्रांति ही काफी नहीं थी कि एक ट्वीट ने तो तस्वीर ही बदल कर रख दी। सरकारी कारस्तानियों पर अंतरराष्ट्रीय फोकस जमा तो सरकार के लिए किसान आंदोलन को लेकर दिक्कतें और बढ़ गईं।
नतीजा क्या हुआ? सरकार बचाव की मुद्रा के बजाए, प्रतिक्रिया पर उतर आई। अफरातफरी और हताशा में सरकार ने ऐसे कदम उठाए जिसे दुनिया हतप्रभ होकर देखती रह गई। सरकारी ट्विटर हैंडल रिहाना और ग्रेटा थनबर्ग को जवाब दिए जाने लगे और उन्हें फटकार लगाई जाने लगी। ऐसा इससे पहले कभी नहीं हुआ था कि किसी व्यक्ति विशेष के ट्वीट पर सीधे सरकार ने प्रतिक्रिया जताई हो।
सरकार ने कंटीले तारों की बाड़ लगाने, दीवारे खड़ी करने, सड़कों पर कीलें ठोंकने के साथ बाकी जो कुछ किया उस पर करोड़ खर्च कर दिए। यह सब किसी दुश्मन देश की सीमा पर नहीं, बल्कि देश की राजधानी की दहलीजों पर किया गया। किसलिए? सिर्फ इसलिए कि अपने देश के किसान एक साथ जमा न हो सकें, अपने ही देश की राजधानी में न आ सकें।
दिल्ली और आसपास के इलाकों में इंटरनेट बंद कर दिया गया। जी हां, कश्मीर जैसी जगहों पर तो महीनों इंटरनेट ठप रहा, वहां कम से कम सरकार के पास यह तो बहाना था कि वहां आंतकवादी सक्रिय हैं। लेकिन राजधानी की सीमाओं पर, कौन सा दुश्मन है। रिहाना और ग्रेटा पर जिस भद्दे अंदाज़ में छींटाकशी की गईं, जिस तरह बॉलीवुड के लोगों को सरकारी खर्च पर इसके लिए इस्तेमाल किया गया, वह अचंभित करने वाला था।
जाहिर है, सकपकाई हुई सरकार को अपनी पहले से तय और उसके मुताबिक दोषरहित स्क्रिप्ट से पीछे हटना पड़ा है। और अब वह इस मोड में पहुंच गई है जहां उसे अपने रास्ते में आने वाले हर किसी को कुचल डालने से गुरेज नहीं है।
आखिर यह सब खत्म कैसे होगा, मुझे नहीं पता। लेकिन मैं जानता हूं कि, जब फासिस्ट हताश होकर सकपकाते हैं और क्रूरता पर उतर आते हैं, तो उनका अंत तय होता है। इस सबको लिखते हुए ट्रंप की याद आती है। मैंने किसानों के चेहरे देख हैं, खून से लथपथ होने पर भी फौलादी इरादों के साथ मुस्कुराते हुए, विजयी मुद्रा में हवा में हाथ लहराते हुए। किसान लंबी लड़ाई के लिए आए हैं, और वे पीछे नहीं हटने वाले। मैं उन्हें जीतते देखना चाहता हूं, और शायद आप भी।
अगर किसी और बात के लिए नहीं तो, कम से कम इसी के लिए कि ये बहादुर लोग हैं जो अपने चौड़े कंधों पर लोकतंत्र को बचाने के लिए खड़े हैं। और अगर ये हारे तो, तो बर्बरता जीत जाएगी।
शत्रुघ्न सिन्हा के ट्वीट का थ्रेड नीचे दिया गया है…
Received this intriguing, engrossing & enlightening write up by #SantanuSengupta on the #farmersandolan. It's an excellent & worthwhile read!
"Excellent writeup by santanu sengupta
“Two minutes, and one tweet.
Two minutes. Two minutes can make a bowl of delicious Maggi,
— Shatrughan Sinha (@ShatruganSinha) February 6, 2021