रितेश सिन्हा (वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक)
2024 के आगामी लोकसभा चुनाव को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी के बीच सीधे और कड़े मुकाबले की तरफ सियासती खेमा गोलबंद हो रहा है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे की मौजूदगी में खड़गे को ही सियासी झटका देते हुए जहां इंडिया की नुमांइदगी के तौर पर ममता के शब्दों में फेवरेट राहुल गांधी हैं, वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एनडीए पर पूरा भरोसा कर रहे हैं। कर्नाटक के बेंगलुरू शहर में 26 विपक्षी दलों के नेताओं ने गोलबंदी की, वहीं दिल्ली के अशोक होटल में एनडीए के बैनर तले 38 पार्टियां नरेंद्र मोदी के पीछे लामबंद दिखी। ये तो चुनाव में ही तय हो पाएगा कि कौन किस पर भारी है, लेकिन हौसले दोनों ही सियासी खेमों में बुलंद दिखाई दे रहे हैं। एनडीए का मुकाबला करने के लिए विपक्षी दलों ने इंडिया यानी इंडियन नेशनल डेवलपमेंट इंक्लूसिव एलाइंस की अगुवाई अब राहुल गांधी करेंगे जिसकी घोषणा बकायदा टीएमसी सुप्रीमो व पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने की।
बहरहाल भाजपा ने कांग्रेस के नेतृत्व में बने महागठबंधन की बैठक पर सवाल खड़े करते हुए कहा कि ये पास-पास आने की कोशिशों में जुटे ये दल साथ-साथ चल नहीं पाएंगे। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अगुवाई में 15 पार्टियां शामिल हुई थीं, ये सभी पार्टियांं के अलावा भी बेंगुलुरू में कुछ नए दल भी अपनी दाल गलाने कही गरज से शामिल हुए। कांग्रेस, टीएमसी, आम आदमी पार्टी, सीपीआई, सीपीआईएम, राजद, जेएमएम, एनसीपी, शिवसेना उद्धव ठाकरे, सपा और जदयू के अलावा डीएमके, केडीएमके, वीसीके, आरएसपी, सीपीआई माले, फारवर्ड ब्लॉक, आईयूएमएल केरल, कांग्रेस का जोसेफ गु्रप, केरल कांग्रेस का मणि गु्रप, अपना दल का कामेरावादी, एमएमके आदि दल शामिल हुए। वहीं जेडीएस के प्रमुख पूर्व प्रधानमंत्री एसडी देवगौड़ा को किसी ने न्यौता नहीं दिया। उन्हें भाजपा से उम्मीद थी, लेकिन किन कारणों से उन तक न्यौता नहीं पहुंचा, इस पर कयास लगाए जा रहे हैं।
वहीं एनडीए में कुछ नए दल शामिल हुए जिसमें चिराग पासवान की एलजेपी ने भी भाजपा का दामन थाम लिया। वहीं ओमप्रकाश राजभर की सुहेल दल, जीतन राम मांझी की हम सेकुलर भी अब एनडीए का हिस्सा बनकर भाजपा सरकार की वापसी में अपनी हिस्सेदारी तलाशने पहुंचे हैं। भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने एनडीए की बैठक में 38 दलों की सूची का ऐलान किया। एकनाथ शिंदे गुट की शिवसेना, अजित पवार की एनसीपी, उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोकजनता दल, पवन कल्याण की जनसेना भी इन 38 दलों के बने एनडीए खेमे में शामिल हो चुके हैं। एनडीए की ताकत बने ये दल भाजपा की अगुवाई में लोकसभा में 350 से अधिक सांसदों के साथ मौजूद हैं, वहीं विपक्षी दलों के एकजुट हुए इंडिया में 150 से करीब सांसद हैं। मजे की बात है कि इनमें आधों के पास एक भी सांसद नहीं हैं।
ये दल चक दे इंडिया के नारे के साथ कांग्रेस के नेता राहुल गांधी की सजा के बाद छीनी सांसदी के बाद उनके प्रति उभरी सहानुभूति के रास्ते संसद में पहुंचने का रास्ता देख रहे हैं। वहीं एनडीए में 65 प्रतिशत ऐसी पार्टियां शामिल हुई जिनका एक भी सांसद लोकसभा में नहीं हैं, लेकिन पार्टी के संख्या बल से जनता का भ्रमित करने की होड़ में देश की इन सियासी दलों में लूटापाटी हो रही है। आंकड़ों की खेल से बता दें कि बिहार और यूपी की सीटों को मिलाकर 22 प्रतिशत सीटें लोकसभा का हिस्सा इन्हीं दोनों प्रदेशों से बनता है। एनडीए में शामिल कुछ दल तो जाति पर आधारित हैं, उनका खासा प्रभाव इन प्रदेशों में हैं। वहीं कांग्रेस के नेतृत्व में इंडिया में जुड़े दलों को लगता है कि राहुल की भारत जोड़ों यात्रा के बाद से और सांसदी छीनने के बाद उभरी सहानुभूति गेम चेंजर साबित हो सकती है।
इन सियासी दलों की खेमा बंदी से अलग कुछ दल ऐसे भी हैं, जो अभी हवा का रूख समझने की कोशिशों में जुटे हैं। इनमें ओडिसा का बीजद, आंध्र प्रदेश की वाईएसआर कांग्रेस, यूपी की बहुजन समाज पार्टी और पंजाब की अकाली दल, तेलांगना में तेलुगूदेशम पार्टी और बीआरएस जैसे क्षेत्रीय दल किसी गठबंधन में जाने से पहले थोड़ा और इंतजार करना चाहते हैं। राजनीति की इस सियासती खेल को समझने के लिए आपको बता दें कि बीआरएस को छोड़कर सभी दलों ने नए संसद भवन के उद्घाटन समारोह के मुद्दे पर प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा का खुलकर साथ दिया था। इन दलों के पास भी लोकसभा के करीब 50 सांसद हैं जो दोनों खेमों की बजाए रूको और इंतजार करो की रणनीति पर टिके हैं। ये सियासी दल कहीं न कहीं भाजपा की जाल में उलझे हैं लेकिन ऐन चुनाव के मौके पर अपने पत्ते फेंकते हुए किंग मेकर की भूमिका में सामने आ सकते हैं।
एनडीए के मुकाबले इंडिया बनकर उभरे विपक्षी गठबंधन की बंधी गांठे एक नई पहचान, एक नए नाम के साथ सामने उभरी हैं। विपरीत विचारधारा वाले ये दल राज्य और क्षेत्रीय राजनीति में एक-दूसरे के धुर विरोधी हैं और एक-दूसरे के सामने चुनाव लड़कर एक-दूसरे का पस्त करते रहे हैं। मगर 2024 के आते-आते चुनाव में अपने अस्तित्व को बचाने के लिए एक साथ नए नाम INDIA के साथ खड़े हुए हैं। वहीं 20 साल पहले बना यूपीए का सियासी युग का अब अंत हो गया है। आपको बता दें कि गठबंधन का ये इतिहास 1977 और 1989 में अपना कमाल दिखा चुका है। अब विपक्ष के इस गठबंधन से चमत्कार की उम्मीद लगाकर एकजुट हो रहे हैं। इनमें वो दल भी जिन्होंने मोदी के चमत्कार को अपने राज्यों रोका है। इनमें दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की आप पार्टी, झारखंड में हेमंत सोरेन की अगुवाई में झारखंड मुक्ति मोर्चा, पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की टीएमसी, बिहार में नीतीश और लालू की जदयू और राजद भी इंडिया में शामिल हैं।
गठबंधन की पहली मीटिंग में सभी दलों को पटना बुलाने वाले नीतीश कुमार खुद को ही संयोजक बताकर कर्ताधर्ता और नेता समझ रहे थे, लेकिन बेंगलुरू पहुंचते ही उन्हें अपनी राजनीतिक हैसियत का अंदाजा लग गया। मीटिंग खत्म होते ही प्रेस कांफ्रेंस का बहिष्कार करते हुए चार्टर प्लेन से नीतीश कब वहां से खिसक लिए किसी को पता नहीं चला। पटना पहुंच कर नीतीश ने चुप्पी साध ली। उनका खेल ममता ने बिगाड़ दिया। इस बैठक की अध्यक्षता कर रही सोनिया गांधी के बगल में बैठी ममता बनर्जी ने राहुल को गठबंधन का फेवरेट नेता कहकर सबको चौकाया ही नहीं, नीतीश के मंसूबे पर भी पानी फेर दिया। महज 24 घंटे के भीतर नीतीश के जदयू के अध्यक्ष ललन सिंह ने सफाई पेश करते हुए उनका बचाव किया। अभी गठबंधन की ये दूसरी बैठक थी, सियासत का खेल अभी बाकी है। लोकसभा चुनाव में 8 महीने का समय अभी बाकी है और कम से कम 8 मीटिंग होना तय है।
एनडीए और इंडिया के बीच एक-दूसरे को शह और मात देने का खेल जारी रहेगा। कौन कब पाला बदलकर इधर से उधर जाएगा, इस पर जनता की नजरें बनी रहेगी। अंतिम स्वरूप मार्च तक तय हो पाएगा, तब तक दलों के सियासी दांवपेंच चलते रहेंगे। 2024 के चुनाव में विपक्षी दलों की घबराहट राहुल गांधी के बढ़ते प्रभाव को लेकर है। ये क्षेत्रीय जो कांग्रेस के वोटबैंक पर कब्जा किए बैठे थे, अब वो छिटकता दिखाई दे रहा है। मोदी के ये घोर विरोधी नेताओं को अपना अस्तित्व बचाए रखने और समेटने के लिए राहुल गांधी जिंदाबाद का नारा लगाना पड़ेगा। वहीं एनडीए से जुड़े दल इस चुनावी वर्ष में मोदी मैजिक के अलावा जनता के लिए सरकार की लोकलुभावन घोषणाओं का भरोसा कर रहे हैं। इनमें पुरानी पेंशन की बहाली और निजी क्षेत्रों में कार्यरत कर्मचारियों की भविष्य निधि पेंशन योजना का अमल का भी मामला सामने है जिस पर जल्द ही मोदी सरकार आम जनता को राहत देने का फैसला कभी भी कर सकती है। सियासत की शतरंज पर शह और मात का खेल जारी है। देखना है कि जीत का सेहरा किसके सिर पर बंधता है।