रितेश सिन्हा
वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पिछले सप्ताह सागर संभाग में रविदास मंदिर के शिलान्यास के बहाने दलित और आदिवासी वोटरों की गोलबंदी में चल रही प्रतिस्पर्धा भाजपा को बढ़त दिखाने के लिए एक और मंदिर के राजनीति की नींव डाल दी। सागर संभाग में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने मंदिर की काट में संत रविदास के नाम पर विश्वविद्यालय बनाने की घोषणा कर डाली। भाजपा के मंदिर की राजनीति की काट में कमलनाथ भी हनुमान मंदिर से लेकर बागेश्वर महाराज के चरणों में नतमस्तक हैं। मध्य प्रदेश की राजनीति में सागर दलित और आदिवासी राजनीति का केंद्र है। यहां से लगभग दलित और आदिवासी समुदाय से संबंधित 82 सीटों का सीधा संदेश जाता है। भाजपा और कांग्रेस एक-दूसरे पर भारी पड़ते हुए इस बड़े वोट बैंक को अपने तरफ खींचना चाहती है। इन सीटों का रूझान सरकार बनाने में बड़ी भूमिका निभाता है। इसमें 47 अनुसूचित जनजाति और 35 अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित क्षेत्र हैं।
प्रदेश के मुख्यमंत्री व भाजपा के शिवराज सिंह चौहान ने अपनी यात्राओं के माध्यम से 82 सीटों को साधने में जुटे थे जिसकी सागर से पूर्व सांसद और अब जिलाध्यक्ष आनंद अहिरवार ने मामा की हवा बिगाड़ दी थी। इसी कड़ी में उन्होंने नरियावली विधानसभा में प्रदेशाध्यक्ष कमलनाथ और बड़े नेताओं को एक बड़ी सभा की तैयारियों में जुटे थे। इसे ऐन मौके पर प्रदेश के नेताओं और प्रभारी के दवाब में उसे आगे बढ़ा दिया गया था।
डैमेज कंट्रोल के नाम पर प्रदेश में भाजपा को बचाए रखने के लिए मामा शिवराज ने प्रधानमंत्री मोदी को मंदिर की राजनीति का गणित समझाया था। उसी की काट में मल्लिकार्जुन खड़गे सागर पहुंचे थे जहां कांग्रेस की सरकार बनने पर रविदास मंदिर की काट में रविदास विश्वविद्यालय की घोषणा कर डाली। आपको बता दें कि पिछले चुनाव में 2013 में भाजपा ने 82 आरक्षित सीटों में भाजपा ने 59 जीतीं थीं, जिनमें अनुसूचित जनजाति की 31 सीटें और अनूसूचित जाति की 34 सीटें शामिल थीं। 2018 के चुनाव में भाजपा को अनुसूचित जाति की 18 और अनुसूचित जनजाति की 16 सीटें ही मिली थीं। बची सीटों में कांग्रेस ने अपना तिरंगा लगाते हुए सरकार बना ली थी। मध्य प्रदेश में कांग्रेस की बढ़त को देखते हुए स्थानीय नेताओं ने अपने समीकरण बनाने शुरू कर दिए हैं। इस समीकरण के गणित में उलझे नेताओं ने प्रभारी सचिव सी पी मित्तल को आगे करते हुए जेपी अग्रवाल का पत्ता काट दिया। जेपी अग्रवाल प्रदेश में कांग्रेस को मजबूती देते हुए गिने-चुने नेताओं से मध्यप्रदेश को गुटबाजी से निकालकर जिले के स्थानीय नेताओं को महत्व दे रहे थे। वहीं कमलनाथ और दिग्विजय सिंह ने प्रभारी सचिव के जरिए इनका शिकार कर लिया। मध्य प्रदेश में दिग्गी राजा अपने बेटे राज्यवर्द्धन को चुनाव जिताने की फिराक में भाजपा के कद्दावर नेता कैलाश विजयवर्गीय से हाथ मिलाए हुए हैं।
कमलनाथ और दिग्गी की जोड़ी इंदौर के बड़़े नेताओं को विधानसभा से बाहर रखने की रणनीति पर काम कर रही है। इंदौर के वरिष्ठ राजनेता मोहन ढाकोनिया को इंदौर से टिकट दिया जाता है तो वो कैलाश विजयवर्गीय की राजनीतिक काट हो सकते हैं। ओबीसी समुदाय के ढाकोनिया की जमीनी पकड़ का फायदा कांग्रेस को मिल सकता है। वहीं जीतू पटवारी जो दिग्गी के बेटे की राजनीति में सबसे बड़े बाधा बने हुए हैं, उनको रोकने की भी तमाम कोशिशें की जा रही है। कमलेश्वर पटेल पिछड़ा वर्ग से जरूर आते हैं पर विंध्य के बाहर उनकी कोई पकड़ नहीं है। इसी तरह मालवा क्षेत्र में पकड़ रखने वाले उमंग सिंघार भी हाशिए पर हैं। पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव को राहुल गांधी ने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाया था और उन्होंने 4 वर्ष तक संगठन की कमान संभाली। इसका लाभ भी पार्टी को 2018 के चुनाव में मिला पर अ बवे कमलनाथ और दिग्गी के जुगलबंदी का शिकार हो रहे हैं। मध्य प्रदेश के कई बड़े नेता गुटीय राजनीति के शिकार हैं। किसी नेता की पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह से पटरी नहीं बैठती है तो कोई कमलनाथ को पसंद नहीं। छोटे कार्यकर्ताओं की तो छोड़िए बड़े दिग्गजों को महीनों कमलनाथ मिलने का समय नहीं देते।
जेपी अग्रवाल की मध्य प्रदेश की छुट्टी में दिग्विजय की महती भूमिका है। वहीं जेपी अग्रवाल की प्रदेश के नेताओं की सारी रिपोर्ट को मित्तल कमलनाथ, दिग्गी और मुकुल वासनिक तक सीधे पहुंचा रहे थे। इसकी बड़ी कीमत जेपी को चुकानी पड़ी। हाल में घोषित सीडब्लूसी में जेपी अग्रवाल को जगह नहीं मिली। वहीं पवन बंसल सरीखे नेता को स्थायी आमंत्रित सदस्य का दर्जा देकर खास बेइज्जत कर दिया गया। पवन बंसल कांग्रेस के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष हैं। इतना ही नहीं, कांग्रेस अध्यक्ष ने नासिर, गुरदीप सिंह सपल और कामेश्वर पटेल जैसे नौसिखिए नेताओं को कांग्रेस कार्यसमिति में लेकर कांग्रेस की बड़ी जमात को नाराज कर लिया। वहीं देंवेंद्र यादव, मनीष चतरथ सरीखे लोगों को बड़ी भूमिका दी गई है। कांग्रेस आज भी गु्रप 23 से बाहर नहीं निकल पायी है जिसका खासा नुकसान मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के आगामी चुनाव में होगा। मध्यप्रदेश में जेपी के हटने के बाद कांग्रेस की सेकेंड लॉबी जो किसी ग्रुप से जुड़ना नहीं चाहती, वो खासी नाराज हैं। जेपी सर्वसुलभ थे, वहीं रणदीप खास लोगों से मुलाकात के आदी हैं। मध्यप्रदेश में भाजपा के मुकाबले कांग्रेस की बढ़त को सीडब्लूसी का गठन भारी झटका है। प्रभारी बदलना तो खासा नुकसान पहुंचा सकता है।
भाजपा ने 39 उम्मीदवारों की पहली सूची जारी कर अपना प्रचार शुरू करने की खुली छूट दे दी थी। कांग्रेस की 66 सीटिंग सीटों पर प्रत्याशियों को प्रचार करने की छूट दे दी गई है। प्रदेश अध्यक्ष और प्रभारी ने इंदौर विधानसभा क्षेत्र क्रमांक एकः संजय शुक्ला, इंदौर विधानसभा क्षेत्र क्रमांक दोः चिंटू चौकसे, राऊः जीतू पटवारी, देपालपुरः विशाल पटेल, कुक्षीः सुरेंद्र सिंह बघेल, गंधवानीः उमंग सिंघार, सरदारपुरः प्रताप ग्रेवाल, धरमपुरीः पांछीलाल मेड़ा, मनावरः डॉ. हीरालाल अलावा, महेश्वरः डॉ. विजयलक्ष्मी साधौ, कसरावदः सचिन यादव, भीकनगांवः झूमा सोलंकी, खरगोनः रवि जोशी, भगवानपुराः केदार डावर, राजपुरः बाला बच्चन, झाबुआः कांतिलाल भूरिया या विक्रांत भूरिया, पेटलावदः वालसिंह मेड़ा, अलीराजपुरः मुकेश पटेल, सैलानाः हर्ष विजय गेहलोत, आलोटः मुकेश चावला, तरानाः महेश परमार, घट्टियाः रामलाल मालवीय, खाचरौदः दिलीप गुर्जर, उज्जैन (उत्तर)ः माया त्रिवेदी, सोनकच्छः सज्जनसिंह वर्मा, हाट पीपल्याः राजवीर सिंह बघेल, शाजापुरः हुकुमसिंह कराड़ा, शुजालपुरः रामवीर सिंह सिकरवार, कालापीपलः कुणाल चौधरी और आगर से विपिन वानखेड़े के नाम लगभग तय कर दिए हैं। जानकारी के अनुसार मालवा-निमाड़ की 66 में से 30 सीटों पर कांग्रेस उम्मीदवार को लेकर कोई हायतौबा नहीं है। वहीं अन्य सीटों पर दो या तीन नाम के पैनल हैं जिन पर कमलनाथ-दिग्गी की ही चलेगी। पार्टी ने अपने ज्यादातर विधायकों को फिर से मैदान में उतारने का फैसला कर लिया है। बाकी सीटों पर स्क्रीनिंग कमिटी के द्वारा नाम तय किए जाएंगे। कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के आगे ये कमिटी कितनी कारगर होगी, ये तो टिकट बंटने के बाद ही तय हो पाएगा।