कांग्रेसियों को राजनीति से अलग होकर कॉमेडी शो चलाना चाहिए। उस उद्गम से भी रोज़ी रोटी का इंतज़ाम हो ही जायेगा। सियासत इनके वश की नही। प्रतीत होता है इन्होंने संन्यास ग्रहण करने का मन बना लिया है। प्रेयसी के नफ़रत के शिकार लगते हैं बेचारे। सियासत कर रहे होते तब इन्हें एहसास होता कि देश के नागरिकों की याचना क्या है? देशवासी की इच्छा है नफ़रत फैला कर देश की प्रगति को बाधित करने वाले दंगाइयों को दण्ड दिया जाए। उनका वध किया जाए। नागरिक कभी नही चाहते कि दंगे की आड़ में पूरी बाज़ार को नफ़रत की बाज़ार के नाम पर कुख्यात किया जाए। न तो दुकानदार और न ही ग्राहक बाज़ार में नफ़रत फैलते देखना चाहते हैं। दंगाईयों और अपराधियों से यह दोनों सीधे टकराने से परहेज़ करते हैं, शांति से जीना चाहते हैं। कोई जब विश्वास दिलाने में कामयाब हो जाता है कि वह उदंडता से क्षेत्र को मुक्त करा देगा, लोग बरबस ही उसके पीछे लामबंद हो जाते हैं।
बाज़ार को बेजार किया किसने? क्या वे उदंड उत्पाती माफ़ी के हकदार हैं, शायद बिल्कुल नही! क्या मानवता को कलंकित और धंधे को चौपट करने वाले आतताइयों के ऊपर हेलीकॉप्टर से फूलों की पंखुड़ियों की वर्षा कर उन पर मोहब्बत उड़ेला जा सकता है? जवाब यही आयेगा कतई नही। वह अपराधी हैं जिसने बाजार और धंधे को बंधक बना रखा है। दण्ड से कम पर शान्ति प्रिय लोग इन्हें माफ़ करने को तैयार नही हैं फलतः इन्हें एक मजबूत नायक की तलाश होती है। जो बाजार को इन दुष्टों से आज़ाद कराए, शांति कायम रखने का भरोसा दे सके। राहुल गांधी में नायकत्व के सभी तत्व मौजूद हैं फिर भी प्रदर्शन में हिचक क्यों रहे हैं समझ से परे है।
सत्ता में रहने पर मोहब्बत, सद्भावना, विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार के प्रकल्प को प्रस्तुत करना नागरिकों के कर्ण पटल को सुकून दे सकते है। जब सत्ता ही आम आदमी की जरूरतों को लूटने पर आमादा हो तब नागरिकों की नजरे तलाशती हैं एक प्रतिबद्ध कर्मठ योद्धा की न कि मजनूं की; जो इश्क और मोहब्बत बांटता फिरे। यह एक ऐसा वक्त है जब देश के नागरिकों को महसूस होने लगा है कि शायद अब लोकतन्त्र नही बचेगा। राहुल गांधी को नफ़रत के बाज़ार में मोहब्बत की दुकान खोलने से फुर्सत मिल जाए तब वह गंभीरता से मनन करें कि क्या लोकतन्त्र को बचाने का हौसला उनमें है? यदि हां तो यह विश्वास देश के नागरिकों के अन्दर भरना पड़ेगा कि हैं हम ! लोकतन्त्र के हत्यारों को पाताल लोक से घसीट कर दण्ड देंगे। आप बस हम पर भरोसा रखें।
कांग्रेसी अभी भी धोखे में जी रहे हैं शायद! वह गलतफहमी में है कि वह आज भी सत्ता के सिंहासन पर विराजमान हैं। कब सीखेंगे यह विपक्ष की राजनीति? विपक्ष की राजनीति इस बात पर निर्भर करती है कि आप सत्ता पक्ष की विफलताओं पर देश के नागरिकों के जेहन में घर कर गए गुस्से को प्रचण्ड रूप से बाहर कैसे निकाल सकते हैं। जितना अधिक सत्ता पक्ष के खिलाफ़ देश के नागरिकों के नफ़रत को हवा देंगे उतनी ही प्रतिक्रिया में दोगुनी गति से नागरिक धोबी घाट पर पत्थरों पर धुलने वाले कपड़ों की भांति सत्ता की अकड़ को पटक पटक कर धुल देंगे।
शनै: शनै: यह प्रक्रिया तब तक अनवरत चलनी चाहिए जब तक हवा धीरे धीरे उग्रता धारण करते करते भयानक बवंडर का रूप न ले ले और उड़ा ले जाए सत्ता के तम्बू को बम्बू के साथ। कांग्रेस को राजनीति में एक मापदण्ड निर्धारित करना होगा। सॉफ्ट हिन्दू और हार्ड हिन्दू के छिछले तसले से निकल देश की संप्रभुता, एकता और अखंडता के महासागर में गोते लगाने को तत्पर रहना चाहिए। लोगों को विश्वास में लें कि जिस दिन हम सत्ता में आयेंगे इंसानियत के सैयादों को कठोर से कठोर दण्ड देगे। आम जन मानस के मस्तिष्क पर यह मज़बूत सन्देश छोड़े। फिर परिणाम आपके समक्ष होगा। जनता सत्ता परिवर्तन की मुहिम को खु़द संभाल लेगी। धूर्त शासक आपको बदनाम कर सकता है लेकिन जनता को कैसे दोषी ठहरा पायेगा? एक बार जनता ने मोर्चे पर सेनापति की भूमिका संभाल ली तब ईवीएम भी बदचलन होने में कांप जायेगी।
देश के समक्ष प्रदर्शित करें अपना संकल्प कि नागरिकों को जिन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार की मूलभूत सुविधाओं से वंचित किया है और उनकी रोटी पर गब्बर सिंह का पहरा लगाया है उन्हें कठोर दण्ड आप ही देंगे। भ्रष्टाचारियों से जेल की सलाखों के पीछे आप चक्की पिसिंग पिसिंग करायेंगे। कौन करेगा इस रहसय का खुलासा कि जिन हाथों में देश के नागरिक सत्ता सौंपते हैं वह दरअसल वह देशवासियों का प्रतिनिधि मात्र है। वह शहंशाह नही है कि चार्वाक दर्शन का अनुयाई बनकर विश्व बैंक से कर्ज पे कर्ज़ लेकर घी पीता रहे। देश के नागरिक सत्ता से उतने परेशान नही है जितना वह भ्रष्ट नौकरशाही से हैं। क्या भ्रष्ट नौकरशाही को भी आप मोहब्बत की दुकान में मुनीब रखेंगे? ईडी, सीबीआई, इनकम टैक्स के अधिकारी यदि संविधान के प्रति निष्ठावान होते तब सभी भ्रष्ट लोग जेल की हवा खा रहे होते चाहे वह किसी भी दल से संबंधित क्यों न होते। यह भ्रष्ट लोग मलाईदार पोस्टिंग के चक्कर में सत्ता का तलवा चाटते रहते हैं। मलाईदार पोस्टिंग के मायने क्या हैं, कहीं देश की सम्पत्ति लूटने के लिए अवसर की तलाश तो नही? इन अधिकारियों के रहते भ्रष्टाचार हो कैसे जाता है? राजनेता को हर पांच साल में जनादेश हासिल करना होता है। उनका जॉब स्थायी नही है। स्थायी जॉब वाले के रहते अस्थायी स्कैम कैसे कर सकता है? अर्थ स्पष्ट है कि यह स्थायी अधिकारी अस्थायी नेता को बेईमान होने के गुर सिखाता है।
अब; कब सवाल करेंगे कि देश की सर्वोच्च न्यायालय में कार्यरत 33 न्यायमूर्तियों में सबके सब हिन्दू है तब भी हिन्दू खतरे में हैं? क्या तीन महिला न्यायमूर्ति को हिन्दू नही माना जाता वही हिन्दू धर्म के लिए खतरा बन रही हैं? हिन्दू धर्म के अनुसार महिलाओं को न्याय की कुर्सी पर बैठने का हक़ नही है क्या? कमाल यह है कि बी आर गवई के अलावा सभी जज उच्च जाति के हैं। हिन्दू का बड़ा भाग जिसे पिछड़ा कहा गया है उस समाज से एक भी जज उच्चतम न्यायालय में नही है। अब सवाल यह उठता है कि क्या उच्चतम न्यायालय में कोई जज हिन्दू नही है, यदि नही तब आखिर यह लोग हैं कौन? कांग्रेस को अपना पक्ष शीशे की तरह क्रिस्टल क्लियर प्रस्तुत करना ही पड़ेगा आख़िर वह खड़े कहां हैं, दाएं बाएं या फिर मध्य में? सृष्टि की रचना के लिए स्त्री या पुरुष एक लिंग निर्धारित होता है दोनों के संसर्ग से होता है सृष्टि का निर्माण। किन्नर को समाज में विकास की सभी मुख्य धारा से जोड़ना आवश्यक है, जोड़ा भी जाना चाहिए। किसी भी तरह विभेद करने का कोई औचित्य प्रतीत नही होता। फिर भी संतानोत्पादन के लिए इनसे अपेक्षा नही की जा सकती। कारण स्पष्ट है प्रकृति ने इन्हें इस सुविधा से वंचित कर रखा है।
कांग्रेस को राजनीति में फिर से स्वयं को साबित करने की जरूरत है। एक बार फ़िर से स्वतंत्रता संग्राम के जज़्बे को प्रदर्शित करें। बीजेपी तीन अंकों में पहुंचने के लिए तरसेगी। मतदान के परिणाम को बदलने में ईवीएम का अपना बड़ा रोल है। मुक्ति के लिए एक ही मार्ग प्रतीत होता है; पूरे देश में बूथ लेवल तक हलफनामा पर हस्ताक्षर अभियान चलाया जाए कि ईवीएम बन्द कर बैलट पेपर से चुनाव कराया जाय। शायद केंचुआ(केंद्रीय चुनाव आयोग) अपने निर्णय पर पुनर्विचार करने को मजबूर होगा यदि नही हुआ तो पब्लिक स्वतः बेईमान केंचुआ को सबक सिखाने का मार्ग तलाश लेगी। क्षेत्रीय दलों की भूमिका की चर्चा यहां निरर्थक है।