समाजवादी पार्टी के संस्थापक सदस्य और कद्दावर नेता आज़म खान पिछले तीन महीनों से परिवार सहित जेल में बंद है। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू भी एक पखवाड़े से जेल में बंद है। कांग्रेस अपने नेता के लिए हर मोर्चे सँघर्ष कर रही है जबकि समाजवादी पार्टी में ऐसी कोई हलचल नही है। ऐसा क्यों हो रहा है यह रिपोर्ट पढिये!
12 जून को कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी ने एक लेख लिखा है। इस लेख को कई मीडिया संस्थानों ने प्रकाशित किया है। इस लेख में प्रियंका गांधी ने कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष विधायक अजय कुमार लल्लू के संघर्षों की गाथा बताई है। प्रियंका गांधी ने उनके साथ संस्मरण साझा किए है। उनकी बहादुरी की दास्तान लिखी है। प्रियंका ने यह भी लिखा है कि कभी ‘लल्लू’ छठी क्लास के बाद फल का ठेला लगाते थे और दिल्ली में 90 रुपये रोज़ की मजदूरी करते थे। 2012 में वो कांग्रेस के टिकट पर विद्यायक बने और 2017 में वो फिर से जीत गए। वो सही अर्थों आम आदमी के सँघर्ष प्रतीक है।
कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू फ़िलहाल जेल में बंद है। 20 मई को आगरा पुलिस ने राजस्थान बॉर्डर पर शाहपुर गांव के नज़दीक उन्हें लॉकडाऊन के दौरान धरने देने और महामारी एक्ट के तहत गिरफ्तार कर लिया गया था। इसके बाद उन्हें जमानत मिल गई मगर इससे पहले उनकी रिहाई हो पाती, उनके विरुद्ध बसों के ग़लत नंबर उपलब्ध कराने के लिए धोखाधड़ी के मामले में मुक़दमा दर्ज कर लिया गया इसके बाद उन्हें जेल भेज दिया गया।
ये तब हुआ जब कांग्रेस ने मजदूरों को उनके घर पहुंचाने के लिए एक हज़ार बस लगाने का दावा किया था और भाजपा सरकार इससे असहज दिखाई दी थी। बसों को प्रवेश देने के लिए अड़े ‘लल्लू’ को जेल भेज दिया गया। तब से ‘लल्लू’ जेल में बंद है। प्रियंका गांधी से लेकर राहुल गांधी तक उनके लिए आवाज़ उठा रहे हैं। उत्तर प्रदेश के तमाम जिलों में कांग्रेस के कार्यकर्ता सड़क पर है। बागपत से लेकर बाँदा तक कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने संग्राम छेड़ रखा है। वाराणसी से लेकर मुजफ्फरनगर तक कांग्रेस नेताओं पर मुक़दमें लिखे जा रहे हैं। मगर मजाल है कि कांग्रेस के कार्यकर्ता पीछे हट रहे हो। कांग्रेस की पूरी टीम अपने प्रदेश अध्यक्ष के लिए ज़मीन पर जुटी है। इसके लिए बाकायदा जोन बांटकर प्रभारी बनाकर रणनीतिक तरीके से लड़ाई लड़ी जा रही है।
कांग्रेस के नेता विधान परिषद सदस्य नसीमुद्दीन सिद्दीकी के अनुसार सरकार दमनकारी नीति अपना रही है। कांग्रेस के पूरे प्रदेश में चलाए गए सेवा कार्यो से वो विचलित महसूस कर रही है।खुद भाजपा के लोग तो किसी की धरातल पर मदद करते हुए दिखाई नहीं दिए। कांग्रेस जब ऐसा कर रही है तो उसके रास्ते में रुकावट बन रहे हैं। अगर वो ऐसा सोचते हैं कि हमारे प्रदेश अध्यक्ष को जेल भेजकर, हमारे नेताओं और कार्यकर्ताओं पर मुक़दमा लिखकर हम डर जाएंगे हम अपने प्रदेश अध्य्क्ष अजय कुमार लल्लू के लिए भी लड़ेंगे और सेवा सत्याग्रह भी करेंगे। कांग्रेस ने तय किया है कि हम इसके लिए 25 लाख लोगों को खाना खिलाएंगे और 10 लाख पोस्टर लगाकर ‘लल्लू जी’ के लिए लडेंगे।
कांग्रेस की आराधना मिश्रा से लेकर सहारनपुर के इमरान मसूद, मुजफ्फरनगर के पंकज मलिक, अमरोहा के सचिन चौधरी समेत तमाम नेतागण अजय कुमार लल्लू के लिए कोरोना महामारी के बीच भी अलग अलग तरीकों से सँघर्ष कर रहे हैं। अजय कुमार लल्लू के करीबी अनिल यादव कहते हैं “उनकी लड़ाई के तरीके इस तरह से मैनेज किये गए हैं कि महामारी से बचने के तमाम एहितियात बरते जा रहे हैं जैसे एक दिन कांग्रेस के 50 हजार कार्यकर्ता एक साथ डिजिटल प्लेटफॉर्म फेसबुक पर आएं और उन्होंने योगी सरकार की दमनकारी नीतियों के बारे में जनता को अवगत कराया हम जानते है,हम अपने प्रदेश अध्यक्ष के बाहर आने तक शांत नही बैठने वाले हैं।”
75 साल के आज़म खान अब तक समाजवादियोंं के दिल के सरताज़ रहे हैं मगर यह यक़ीन करना मुश्किल है कि वो उम्र के इस पड़ाव में अपनी विधायक पत्नी तंजीन फ़ातिमा और बेटे अब्दुल्ला आज़म के साथ सूबे की सबसे कम सुविधाजनक जेलों में एक सीतापुर में सख़्त गर्मी के बीच
अपना सबसे मुश्किल समय काट रहे हैं। आज़म खान इस समय रामपुर से सांसद है। वो 9 बार रिकॉर्ड विधायक रह चुके हैं। उनकी राज्यसभा सांसद पत्नी अब विद्यायक है।उनके विद्यायक बेटे की सदस्यता अब रद्द हो चुकी है।उनके विरुद्ध 89 मुक़दमे दर्ज हुए हैं। हर तीन दिन बाद किसी मुक़दमे में तारीख़ लगती है। तारीख़ दर तारीख़ के बीच उन्हें कुछ मामलों में जमानत मिल गई है। अब तक उनकी ईद जेल में गुजर चुकी है। साढ़े तीन महीने में उनका पांच किलो वजन कम हो चुका है। उनकी बीमार पत्नी अपनी दवाइयों को लेकर कई बार अनुरोध कर चुकी है और उनके बेटे अब्दुल्ला आज़म मानसिक तनाव से गुजर रहे हैं।
कभी सरकार को अपनी उंगलियों पर नचाने वाले आज़म खान के लिए आज उनकी अपनी बनाई हुई समाजवादी पार्टी में कोई सुरसुराहट नही दिखाई देती है। रामपुर में जरूर हलचल है। उनके समर्थक मुन्नू खान कह रहे हैं ” खान साहब को अब समाजवादी पार्टी को छोड़ देना चाहिए क्योंकि उनकी जिंदगी के सबसे मुश्किल वक़्त में पार्टी के लोगों ने उनका साथ नही दिया।
आज़म खान 27 फरवरी को अपने बेटे अब्दुल्ला आज़म के दो जन्म प्रमाण पत्र के मामले में अदालत में समर्पण करने पहुंचे थे। वहां से उन्हें परिवार सहित जेल भेज दिया गया। इसके बाद उम्मीद थी अगली तारीख पर जमानत मिल जाएगी मगर ऐसा नही हुआ इसके उलट सुरक्षा का हवाला देकर उन्हें 270 किमी दूर सीतापुर जेल में शिफ्ट कर दिया गया। वहां से तारीख़ पर पुलिस की गाड़ी में आने वाले आज़म खान ने इस तकलीफ़ के बाद एक दिन कहा कि उनके साथ “आतंकवादियों” जैसा सुलूक हो रहा है।
उत्तर प्रदेश की सियासत में समाजवादी पार्टी के सबसे बड़े मुस्लिम चेहरे का यह हश्र बेहद चोंकाने वाला है। इसमे सबसे आश्चर्यजनक यह है ऐसे समय में पार्टी उनके साथ खड़ी दिखाई नही देती है। आज़म खान की पहचान एक फ़ायर ब्रांड नेता की है। वो अक्सर संघ और भाजपा के ख़िलाफ़ मुखर रहे हैं। उनके कई बयान विवादास्पद रहे हैं।
वो खरी-खरी कहने के लिए जाने जाते हैं। समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव के सबसे क़रीबी साथी की इस तकलीफ़ पर उनके दल की खामोशी सवाल पैदा कर रही है।
आज़म खान से जेल में मिलकर लौटे पार्टी के विधान परिषद सदस्य आशु मलिक इसे बेबुनियाद बात बताते हैं वो कहते हैं “पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव उनसे मिलने अगले ही दिन पहुंच गए थे। उनकी एक एक गतिविधि की अखिलेश जी को जानकारी है वो उनकी पूरी तरह मदद में जुटे हैं। मामला अदालत में है इसलिए इसलिए कोई कुछ नही कर सकता है। धीरे-धीरे उन्हें जमानत मिल रही है जल्दी ही वो बाहर जाएंगे। कोरोना काल के चलते सड़क पर प्रदर्शन नही हो रहे हैं। जब इसका असर था तो किये गए
अखिलेश जी खुद रामपुर पहुंचे थे। आज़म साहब के साथ बदले की राजनीति की जा रही है। यह अमानवीय है। वो 75 साल के है। फिलहाल जेल में वो अपनी जिंदगी इबादत करके गुजार रहे हैं”।
आशु मलिक वही नेता है जो आज़म खान को नाराज़ होने पर समाजवादी पार्टी में पुनः लेकर आएं थे। आशु मलिक की समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव से नजदीकी जगजाहिर है। वो दो बार आज़म खान से मिलने जेल जा चुके हैं। कहा जा रहा है कि यह दोनों मुलाक़ात आज़म खान के समर्थकों में उनके समाजवादी पार्टी छोड़ने के बाद हुई है। जानकार मानते हैं कि आशु मलिक ‘नेताजी’ के दूत के तौर पर उनसे मिल रहे हैं। 2022 के विधानसभा चुनाव में आज़म खान की नाराज़गी अखिलेश यादव को नुक़सान पहुँचा सकती है। डेमेज कंट्रोल के लिए फिर से आशु मलिक आएं है।
सवाल फिर भी वही है कि इस सब तिकड़म के बीच समाजवादी पार्टी अपने सबसे कद्दावर मुस्लिम नेता के लिए क्यों नही खड़ी हो रही है,जबकि पार्टी का सबसे वफ़ादार वोटर ही मुसलमान है! आज़म खान के टूटे दिल को दिलासा नही हिम्मत की जरूरत है।
राजनीतिक मामलों के जानकार मुजफ्फरनगर के अज़मल राही कहते हैं कि पिछले कुछ समय से अखिलेश यादव अपनी नरम हिंदुत्व की छवि पर काम कर रहे हैं! उन्हें लगता है कि आजम खान के पक्ष में पार्टी के हल्ला काटने से विरोधी मजबूत होंगे और पार्टी की छवि की मुस्लिम परस्त बनाने की कोशिश करेंगे। इससे भाजपा को राजनीतिक लाभ हो जाएगा। अज़मल कहते हैं “हालांकि उनकी यह सोच सही नहीं है क्योंकि यह जगजाहिर है कि आजम खान को एक बड़े वोट बैंक को खुश करने के लिए सज़ा दी जा रही है। जब एक दल अपने वोटर की खुशी के लिए यह कर सकता है तो कम से कम उनकी पार्टी को उनके साथ मानवीय संवेदनाओं के आधार पर डट जाना चाहिए!
मगर बात सिर्फ पार्टी की नही है! आज़म खान के सरकार में बड़ी ताक़त रहते समय उनसे तमाम मुस्लिम नेता नाराज़ हो गए। इनमे शाकिर अली,कमाल अख़्तर, शाहिद मंजूर, अहमद हसन, आशु मलिक,अनीस मंसूरी और अब्दुल्ला बुखारी के दामाद उमर अली खान जैसे नाम शामिल थे। खासकर शिया मुस्लिम इनसे वसीम रिज़वी को तरज़ीह देकर समुदाय के लोगो लखनऊ में हुए लाठीचार्ज को लेकर खफ़ा हो गए।
सहारनपुर के युवा राजनीतिक जानकार फ़रहाद गाड़ा कहते हैं “यह परिवार के भीतर की राजनीतिक लड़ाई थी मगर न ही आज़म खान और न ही ये लोग आपस में एक दूसरे के दुश्मन है। सवाल उन दोस्तों से है जो आज़म खान के करीबी होने का ढोल पीटते थे और अब दड़बे में घुसकर बैठ गए हैं। संगठन के दृष्टिकोण से देखें तो कांग्रेस समाजवादी पार्टी के सामने कहीं नही ठहरती है। मगर वो लड़ रही है। जितने लोग आज़म खान के यहां टिकट मांगने के लिए जुटते थे यही अगर उनके लिए पार्टी नेता के पास जाकर सँघर्ष की गुहार लगाते थे तो नतीजा कुछ और होता!मगर ऐसा लगता है अब लोगो का ज़मीर जिंदा नही बचा है”।
Courtesy: आस मोहम्मद कैफ़।Twocircles.net