इस बात में कोई संदेह नहीं कि आपातकाल हमारे देश के इतिहास के एक काले अध्याय के रूप में हमेशा याद रखा जाएगा। आपातकाल के दौरान लोकतंत्र और लोकत्र की नींव को मजबूत करने वाली सभी संस्थाएं कमजोर कर दी गईं थीं। आपातकाल की निंदा करते हुए मैं यहां स्पष्ट करना चाहूंगा कि मैं अरूण जेटली के उस कथन से पूरी तरह असहमत हूं जिसमें आपातकाल के संदर्भ में उन्होंने इंदिरा गांधी की तुलना हिटलर से की है।
हिटलर को मानव जाति के इतिहास में जिन शासकों का उल्लेख है उनमें से क्रूरतम शासक के रूप में याद किया जाएगा। हिटलर ने सत्ता में आते ही जर्मनी में लोकतंत्र और लोकतंत्रात्मक सस्थाओं को पूरी तरह से ध्वस्त कर दिया था परंतु इंदिरा गांधी ने स्वयं देश में लोकतंत्र बहाल किया था। आपातकाल को समाप्त करते हुए उन्होंने चुनाव की घोषणा की, शायद यह जानते हुए कि जनता उन्हें कड़ा दंड देने को तैयार है। और ऐसा हुआ भी। जनता ने उनकी पार्टी को जबरदस्त शिकस्त दी। फिर हिटलर ने एक समुदाय विशेष को पूरी तरह से नष्ट करने का फैसला किया था। हिटलर ने चुन-चुनकर यहूदियों को मारा था। इंदिरा गांधी के निशाने पर कोई समुदाय नहीं था।
आपातकाल के दौरान ज्यादतियां हुईं थीं परंतु उनके चलते एक भी व्यक्ति ने किसी अन्य देश में राजनीतिक शरण नहीं मांगी। हिटलर के जर्मनी में महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आईंस्टाइन को जर्मनी सिर्फ इसलिए छोड़ना पड़ा क्योंकि वे एक यहूदी थे। इसके विपरीत आपातकाल के घोर विरोधी नेताओं को भी जेल में हर प्रकार की सुविधा प्राप्त थी। स्वयं जयप्रकाश नारायण को सर्वोत्तम चिकित्सा सुविधा प्रदान की गई थी। जे. बी. कृपलानी आपातकाल के घोर विरोधी थे। आपाताकाल के दौरान उन्होंने अनेक आंदोलनों का नेतृत्व किया। इसके बावजूद उन्हें गिरफ्तार नहीं किया गया। इस बारे में बोलते हुए उन्होंने कहा था ‘‘मुझे अफसोस है कि मैं आज भी आजाद हूं जबकि मेरे अनेक दोस्तों को जेल में रहने का विशेषाधिकार (प्रिवलेज) दिया गया है‘‘।
मैं जेटली से जानना चाहूंगा कि यदि आपातकाल इतना ही खराब था और इंदिरा गांधी हिटलर के समान शासक थीं तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के तत्कालीन सरसंघ चालक एम. डी. देवरस ने इंदिराजी की तारीफ क्यों की थी? जहां तक ज्ञात है जेटली सन् 1975 में संघ के स्वयंसेवक थे और शायद आज भी हैं। आपातकाल के दौरान देवरस को गिरफ्तार किया गया था। गिरफ्तारी के दौरान उन्हें पूना के यरवदा जेल में रखा गया था। देवरस ने जेल से 10 नवंबर 1975 को इंदिराजी को एक पत्र लिखा था। पत्र के प्रारंभ में उन्होंने इंदिराजी को ‘‘सम्मानपूर्ण नमस्कार‘‘ से संबोधित किया था। पत्र में उन्होंने लिखा था ‘‘मेरी बधाई स्वीकार करें। सर्वोच्च न्यायालय के पांच न्यायाधीशों की पीठ ने आपके चुनाव को वैध घोषित कर दिया है‘‘।
इसके पूर्व यरवदा जेल से ही देवरस ने 22 अगस्त 1975 को इंदिराजी को एक पत्र लिखा था। इस पत्र में भी उन्होंने इंदिरा जी को ‘‘ससम्मान नमस्कार‘‘ कहकर संबोधित किया था। पत्र में देवरस ने लिखा ‘‘मैंने 15अगस्त 1975 को राष्ट्र को संबोधित आपका भाषण बहुत ध्यान से सुना। आपके संदेश का प्रसारण रेडियो पर हुआ था। आपका भाषण सार्थक और पूरी तरह से आज की परिस्थितियों के अनुकूल था। भाषण सुनते ही मैंने अपनी कलम उठाई और यह पत्र लिखा‘‘। देवरस ने पत्र में उस कार्यक्रम की प्रशंसा की जिसकी घोषणा इंदिरा गांधी ने अपने 15 अगस्त के भाषण में की थी। ‘‘आपने पूरे देश से इस कार्यक्रम में सहयोग की अपील की जो हर दृष्टि से समयानुकूल थी‘‘। देवरस लिखते हैं।
भारतीय जनता पार्टी और आरएसएस बार-बार यह दावा करते हैं कि उनके संघर्ष और त्याग के कारण ही आपातकाल की समाप्ति हुई थी। परंतु इसके ठीक विपरीत देवरस ने अपने पत्र में आश्वासन दिया था कि किसी भी राजनैतिक आंदोलन से उनका या आरएसएस का कोई लेना-देना नहीं है। दिनांक 10 नवंबर 1975 के अपने पत्र में वे लिखते हैं ‘‘संघ का सत्ता की राजनीति से कभी कोई संबंध नहीं रहा है। जयप्रकाश नारायण के आंदोलन के संदर्भ में बार-बार संघ का नाम लिया जाता है। बिहार और गुजरात में हुए आंदोलनों के संदर्भ में भी बिना किसी आधार के बार-बार संघ का नाम लिया जाता है। जबकि वास्तविकता यह है कि इन आंदोलनों से हमारा कोई नाता नहीं है‘‘।
देवरस ने अपने पत्रों में बार-बार प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से यह अनुरोध किया कि ‘‘संघ के हजारों कार्यकर्ताओं को रिहा किया जाए और संघ पर लगा प्रतिबंध हटाया जाए। यदि ऐसा किया जाता है तो संघ के लाखों स्वयंसेवकों की सामूहिक शक्ति का उपयोग देश के विकास में किया जा सकेगा (यह कार्यक्रम सरकारी हो या गैर-सरकारी)‘‘।
देवरस ने आचार्य विनोबा भावे से भी संघ पर लगा प्रतिबंध हटवाने में सहयोग देने की अपील की थी। यह अनुरोध उन्होंने उस दौरान किया जब वे बंबई में सेंट जार्ज अस्पताल के जेल वार्ड क्रमांक 14 में इलाज के लिए भर्ती थे। वे विनोबाजी को संबोधित करते हुए कहते हैं ‘‘आचार्य विनोबा को चरण स्पर्श। आपसे मेरी प्रार्थना है कि संघ के संबंध में प्रधानमंत्री के मन में व्याप्त भ्रम को दूर करने में मेरी मदद करें। यदि ऐसा होता है तो हमारे हजारों स्वयंसेवक आजाद हो जाएंगे और संघ पर लगा प्रतिबंध हट जाएगा। इसके बाद देश में ऐसी परिस्थिति निर्मित हो जाएगी जिससे संघ के स्वयंसेवक प्रधामनंत्री के नेतृत्व में योजनाबद्ध कार्यक्रम के क्रियान्वयन में भाग ले सकेंगे जिससे देश की प्रगति और विकास के दरवाजे खुल जाएंगे आपके आशीर्वाद की प्रतीक्षा में, आपका एम. डी. देवरस‘‘।
आपातकाल के दौरान यदि इंदिराजी हिटल के समान क्रूर थीं तो संघ जैसी शक्तिशाली संस्था के प्रमुख क्यों इंदिरा जी का नेतृत्व स्वीकार करने को तैयार थे? देवरस के इन पत्रों को विनोद दुआ ने अपने लोकप्रिय कार्यक्रम ‘जन गण मन की बात‘ में संघ प्रमुख की प्रधानमंत्री से क्षमायाचना बताया है।
आपताकाल के दौरान एक नारा बहुत लोकप्रिय था ‘इमरजेंसी के तीन दलाल, संजय, विद्या, बंसीलाल‘। उस दौरान विद्याचरण शुक्ल सूचना एवं प्रसारण मंत्री थे, बंसीलाल रक्षा मंत्री थे और संजय गांधी इंदिराजी के सबसे भरोसे के व्यक्ति थे (संजय इंदिराजी के छोटे पुत्र थे)। ये तीनों आपातकाल के प्रमुख कर्ताधर्ता थे। बाद के वर्षों में भाजपा ने शुक्ल एवं बंसीलाल दोनों का साथ दिया। जहां शुक्ल ने भाजपा के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ा वहीं भाजपा हरियाणा की बंसीलाल के नेतृत्व वाली सरकार में शामिल हुई। सन् 1980 में संजय की एक विमान दुर्घटना में मौत हो गई किंतु भाजपा ने उनकी पत्नी मेनका गांधी को न केवल अपना सदस्य बनाया बल्कि उन्हें केन्द्रीय मंत्रिमंडल में स्थान भी दिया। वे आज भी केन्द्रीय मंत्री हैं। जहां तक हमारी जानकारी है, मेनका ने कभी आपातकाल की निंदा नहीं की है। यदि इंदिरा हिटलर जैसी थीं तो शुक्ल, संजय और बंसीलाल उनके प्रमुख कमांडर थे। आपातकाल के दौरान हुए अत्याचारों की जांच के लिए बनाए गए शाह आयोग ने अपनी रिपोर्ट में इन तीनों को आपातकाल के दौरान हुए अनुचित कार्यों के लिए दोषी माना है। वीसी शुक्ल मीडिया पर लगाई गई सेंसरशिप की निगरानी करने वाले प्रमुख व्यक्ति थे। फिर भाजपा ने बाद में विद्याचरण एवं बंसीलाल का साथ क्यों दिया? मेनका गांधी को केन्द्रीय मंत्री के पद से क्यों नवाजा?
अंत में यह भी उल्लेखनीय है कि आरएसएस स्वयं हिटलर की प्रशंसक है। इसका प्रमाण यह है कि गुजरात की भाजपा सरकार ने स्कूलों की पाठ्यपुस्तकों में हिटलर की प्रशंसा करने वाले पाठ शामिल किए। हालांकि बाद में हंगामा मचने के बाद ये पाठ हटा दिए गए।
एल. एस. हरदेनिया